परिचय

अपने सरल और सादा जीवन शैली के लिए विख्यात फतहुल्लाह गुलेन जिन्हें प्यार से होजा कहा जाता है एक असाधारण अनुपात के विद्वान हैं। इस सदा बहार हस्ती का जन्म पूर्वी तुर्की के शहर एर्ज़ुरुम के अंदर 1941 में हुआ है। एर्ज़ुरुम के एक निजी मज़हबी स्कूल से स्नातक पास करने के पश्चात मज़हबी प्रचारक का लाइसेंस प्राप्त कर लोगों को सहिष्णुता के महत्व के बारे बताना और प्रचार करना शुरू कर दिया।1960 के दशक में अपने सामाजिक सुधार के प्रयासों के चलते तुर्की के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित सामाजिक हस्तियों में शुमार किये जाने लगे।

अगरचे उनकी वेश भूषा बहुत सादा है परंतु उनके कार्य और सोच बहुत वास्तविक हैं। अगर एक तरफ वह सम्पूर्ण मानवता को गले से लगाने की बात करते हैं तो दूसरी ओर विचलन, अविश्वास और अन्याय का विरोध भी करते हैं। आस्था और भावनाओं में गहराई होने के साथ साथ उनके विचार और समस्याओं के प्रति उनके दृष्टिकोण प्रत्यक्ष और तर्कसंगत होते हैं। उनका वयक्तित्व प्यार, ललक, और भावना का एक जीता जगता नमूना है, तथा वह अपने विचारों, कामों, और मामलों के उपचार में असाधारण तौर पर संतुलित भी हैं। तुर्की के बुद्धिजीवी और विद्वान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें गंभीर एवं महत्वपूर्ण विचारक तथा लेखक मानते हैं और यह तसलीम करते हैं कि वह बीसवीं सदी के तुर्की बल्कि मुस्लिम दुनिया के सबसे बुद्धिमान सक्रियतावादियों में से एक हैं। एक नए इस्लामी, बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान- एक ऐसा पुनरुद्धार जिसमे दुनिया के महान क्षेत्रों तक पहुचने की क्षमता हो - के लिए अपने नेतृत्व की प्रशंसा के बावजूद वह हमेशा लोगों से प्रेम दोस्ती और ईश्वर का एक विनम्र सेवक बनने की कोशिश करते रहे हैं और अपने आप को कभी उस से अधिक नहीं माना।

प्रसिद्धि होने की इच्छा दिखावा और डींग, एक "जहरीला शहद" की तरह है जो दिल की आध्यात्मिक सजीवता को बुझा देता है, इसे वह स्वर्ण-सिद्धांत के रूप में तसलीम करते हैं। गुलेन ने अपनी जवानी विशेष रूप से मुसलमानों और सामान्य रूप से पूरी मानवता की भलाई उनकी के लिए शंघर्ष करते, आवाज़ उठाते आकाँक्षाओं और विश्वास के साथ गुज़ार दी। अपने दुख तो आपने सह लिए परंतु दूसरों के दुखों ने आपको तोड़ के रख दिया। मानवता पर होने वाले हर आघात को सर्व प्रथम वह अपने दिल पर आघात महसूस करते हैं। सृष्टि के साथ अपने अन्तरात्मिक लगाओ को इस गहराई के साथ महसूस करते हैं की एक बार उन्होंने कहा था जब भी मैं शरद ऋतु में किसी पत्ते को अपनी शाख से गिरता हुआ देखता हूँ तो मुझे उतना ही दर्द महसूस होता मानो मेरी अपनी बांहें कट गई हों।

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प्रकाशनाधिकार © 2024 फ़तेहउल्लाह गुलेन. सर्वाधिकार सुरक्षित
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